कण कण में है राम
कण कण में है राम
कहां जा रहा है तू ऐ जाने वाले
अंधेरा है मन का, दीया तो जला लें
ऊपर में विशाल गगन है और
नीचे में है गहरा पाताल।
ये जीवन का सफर, एक अंधा सफर है
बहकना है मुमकिन,भटकने का डर है
मैं कहता हूं डंके की चोट पर
कण कण में है राम।
सबकों नाच नचाता है
फिर भी वो नजर नही आता है
जिसका कोई न जग में उसका
प्रभु श्री राम जी ही एक सहारा है।
राम नाम को पतवार बना लें प्यारें
पार लगेगी तेरी जीवन नैया
क्यों घुम रहे हो तुम इधर उधर
कण कण में है राम।
राम जप लें राम रट लें
ये जिंदगी है चार दिनों की प्यारें
सब कुछ देंख रहा है भगवान
सदा न चलता है किसी का नाटक जग में।
लाभ हानि जीवन और मृत्यु
सब कुछ उनकें हाथों में है
उसी का सोचा यहां पे होता है
कण कण में है राम।
नूतन लाल साहू
Milind salve
19-Jul-2023 01:52 PM
V nice
Reply